बे इरादतन भी कभी किसी से गुनाह होता है
कई बार आदमी ठीक, बस वक़्त बुरा होता है
बेरुखी-ए-जाना कब ना-मंज़ूर थी मुझे
हमदर्दी-ए-हुदू देखूं, तो दर्द बड़ा होता है
अंदाज़ उनके ऐसे, सच बात तो सच ही लगती थी
अब उनके झूठ पर भी कहाँ हमको गुमां होता है
इतने चेहरे बदले, खुद को ही भुला चुका था मैं
हाँ, आईने के सामने तो सच ही बयाँ होता है
मंदिर मस्जिद छोडो तुम शेह लो पैसे की
आज की दुनिया में बस वोही खुदा होता है
तुम खफ़ा हो जानबूझकर क्या पता नहीं हमे
रूठने मनाने से ही तो इश्क जवां होता है
इम्तेहान पे इम्तेहान दिए जा 'अकेला'
आग से निकल के ही सोना खरा होता है
~~ Ashish अकेला ~~
[हमदर्दी-ए-हुदू : Sympathy with competitor]
कई बार आदमी ठीक, बस वक़्त बुरा होता है
बेरुखी-ए-जाना कब ना-मंज़ूर थी मुझे
हमदर्दी-ए-हुदू देखूं, तो दर्द बड़ा होता है
अंदाज़ उनके ऐसे, सच बात तो सच ही लगती थी
अब उनके झूठ पर भी कहाँ हमको गुमां होता है
इतने चेहरे बदले, खुद को ही भुला चुका था मैं
हाँ, आईने के सामने तो सच ही बयाँ होता है
मंदिर मस्जिद छोडो तुम शेह लो पैसे की
आज की दुनिया में बस वोही खुदा होता है
तुम खफ़ा हो जानबूझकर क्या पता नहीं हमे
रूठने मनाने से ही तो इश्क जवां होता है
इम्तेहान पे इम्तेहान दिए जा 'अकेला'
आग से निकल के ही सोना खरा होता है
~~ Ashish अकेला ~~
[हमदर्दी-ए-हुदू : Sympathy with competitor]