Tuesday, September 03, 2013

बे इरादतन भी कभी किसी से गुनाह होता है
कई बार आदमी ठीक, बस वक़्त बुरा होता है

बेरुखी-ए-जाना कब ना-मंज़ूर थी मुझे
हमदर्दी-ए-हुदू देखूं, तो दर्द बड़ा होता है

अंदाज़ उनके ऐसे, सच बात तो सच ही लगती थी
अब उनके झूठ पर  भी कहाँ हमको गुमां होता है

इतने चेहरे बदले, खुद को ही भुला चुका था मैं
हाँ, आईने के सामने तो सच ही बयाँ  होता है

मंदिर मस्जिद छोडो तुम शेह लो पैसे की
आज की दुनिया में बस वोही खुदा  होता है

तुम खफ़ा हो जानबूझकर क्या पता नहीं हमे
रूठने मनाने से ही तो इश्क जवां होता है

इम्तेहान पे इम्तेहान दिए जा 'अकेला'
आग से निकल के ही सोना खरा होता है

~~ Ashish अकेला ~~

[हमदर्दी-ए-हुदू : Sympathy with competitor]

Friday, December 21, 2012

13 दिसम्बर का दिन


आज 13 दिसम्बर है!!  

कुछ अर्सा सा गुज़र गया जब हम भी शेर बना फिरते थे, जब मन किया सिनेमा देखने चले गएजब देखो यारों से गप्पेवीकेंड पे बस खेल कूद और मस्ती, कभी रात रात भर सडको पे आवारगीबेफिक्र ज़िन्दगी की सुगबुगाहट लिए हर दिनहर शाम गुज़रा करती थी! ग़ज़लें भी हम आशीष 'अकेला' के नाम से ही पिरोया करते थे!

माँ बाप ने कहा सेटल हो जाओ - उनकी बात हमें अच्छी लगी, मन में लड्डू फूट पड़े और हम शादी करने दौड़ पड़े! वो दिन भी आया और लो हो गयी शादी - अरेंज्ड मैरिज थी हमारी!!

शुरू में बड़ी मिक्स सी फीलिंग हुईटाइम पे घर जाना पड़ेगा यह बात मन को कसोटती पर कोई घर पे इंतज़ार कर रहा है यह जानके मन गदगद हो पड़ता! कुछ महीने बीते और हम इक अलग सी लाइफ में सेटल होने लगेहमारे कुछ विचार मिलते पर ज़्यादातर टकराने लगे! दिन गुज़रे और हमारी हेकड़ी कम होती गयी और वो दिन जल्दी ही आये जब सारी बेहेस बंद हो गयी - अब वो हर बार जीत जाती और हमें मुंह की खानी पड़ती...धीरे धीरे आदत पड़ गयी - चलो अच्छा है जल्दी सब समझ में  गया!

बीते सालों में ट्यूनिंग सी सेट हो गयी हैउनको क्या अच्छा लगेगा क्या बुरा पूरी तरह तो समझ नहीं पाए ...आगे भी उम्मीद कम ही है...पर हाँ किस हालात में कब चुप रहना है और कब चुप रहना है (गलती से रिपीट नहीं है - यह दो अलग अलग एक्शन हैं)  यह थोडा पता चल गया है और सच मानिए यह किसी जीत से कम नहीं है!

आज जब मैं पीछे मुडके देखता हूँ तो पाता हूँ की उन सारी खट्टी मीठी यादों कोसाथ बिताये सुख दुःख के लम्हों को, वो प्यार वो तकरार की बातों को मिलाकर जो इक तस्वीर बनती है वो बड़ी ही अद्भुत है, बड़ी निराली है! कुछ ऐसा एहसास कराती है जो बरसों की तपस्या के बाद ही प्राप्त होता है!

यह सारे इमोशंस  तो आज बाहेर आने ही थे, भई आज ठीक 6 साल जो हो गए हैं हमारी शादी को....!! लेट्स सेलिब्रेट थिस ओकैशन - यह कहते हुए मेरे एक्सप्रेशन कैसे होंगे यह मैं आप ज्ञानी और गुनी लोगों पे छोड़ता हूँ :-)

Sunday, August 05, 2012

तू वीर है तो वार कर ...


फिर तेज़ अपनी तलवार कर
तू वीर है तो वार कर
 
गिर जाये तो मरना नहीं
घिर जाये तो डरना नहीं
अभिमन्यु सा एक मोड़ ले,
इस चक्रव्यूह को तोड़ दे
फिर कदम बढ़ा, उठ हो खड़ा
दुश्मन की नींद हराम कर
तू वीर है तो वार कर

ये ज़िन्दगी एक जुंग सी
मिले जुले कुछ रंग सी
यहाँ लोग मिलेंगे अजब अजब
खेल खिलाएं गज़ब गज़ब
तुझे नीचा वो दिखायेन्गे
तेरा आत्म-विश्वास गिराएंगे
तू लपक झपक
चल अपनी डगर
बस एक लखश्य
ना अगर मगर
तू नज़रें तीर कमान कर
तू वीर है तू वार कर

तू निडर है, तू अमर है
जीत को कस ली कमर है
तेरे अंदर की जो आग है
वो देश का विश्वास है
जहाँ दुश्मन तुझसे  टकराएगा
तू तिरंगा वही लहराएगा
तेरा अंग अंग
माटी में रंग
तू नहीं अकेला
सब तेरे संग
छाती को गर्व से तान कर
तू वीर है तू वार कर 

Saturday, January 14, 2012

बात बाकी .....

आ भी जा कि ज़िन्दगी की एक रात बाकी है
ये जिस्म जल गया है, बस आह बाकी है

जुबां पे लफ्ज़ थे अधूरे, आधी सांस में अटके
मिलो कभी, पूरी करो जो एक बात बाकी है

खत्म कहाँ हुआ है अभी सितम तुम्हारा
जिस्म है छलनी, पर जिगर में हाल बाकी है

उधार की ज़िन्दगी की किश्तें पड़ी बहुत ही भारी
सूद निकल गया , पर अभी ब्याज बाकी है

उठ के कहाँ चल दिए बोलो, बीच में 'अकेला'
माना घिर चुके हो पूरे पर अभी मात बाकी है

~अकेला~

Wednesday, February 25, 2009

दर्द का रिश्ता

दर्द का रिश्ता था ज़रा देर तक ठहरा
किए जतन, नहीं भरा, ज़ख्म था गहरा

डगमगाया एक पल मगर मैं फिर संभल गया
मेरे ज़मीर पर था उसके इमान का पहरा

चाँद की फ़िराक में रात भर फ़िज़ूल ही अब्र देखता रहा
कल तो खिड़की से झाँका था एक हसीन का चेहरा

'अकेला' तुमपे एहसान दोस्तों के इस कदर बड़े
तुम्हारे ही सिर बंधा सबके गुनाहों का सहरा

[अब्र - Sky; फ़िज़ूल - बेकार में]

~अकेला~

Sunday, February 22, 2009

चले आते हैं...

वो अपनी बज़्म में हमें कब बुलाते हैं
तबियत है अपनी ख़ुद ही चले आते हैं

ग़म में हँसता हूँ ना समझ रोना नहीं आता
शब्-ऐ-तन्हाई में आब-ऐ-चश्म चले आते हैं

अपना यह हाल कि अब तबियत मिलती नहीं सबसे
क्या रवायत है जो लोग बे-तलब चले आते हैं

आँखें नोंच ली मेरी तो रकीब तुझको क्या हासिल
रोज़ मुलाकात को उनके कुछ ख्वाब चले आते हैं

ज़ख्म दोस्त हैं मेरे मैं उनको हरा रखता हूँ
ज़रा सूखें तो फिर खाने चोट चले आते हैं

अजब सी बात है 'अकेला' कि उनका नाम लेते ही
ग़ज़ल मुकम्मल को चंद अशार चले आते हैं

[बज़्म - at a feast or entertainment; शब्-ऐ-तन्हाई - तन्हाई की रात; आब-ऐ-चश्म - Tears; रवायत - custom of society; बे-तलब - Uninvited; रकीब - Rival; मुकम्मल - Complete; अशार - Words]

~अकेला~

Tuesday, February 10, 2009

उसी मोड़ पे

जहाँ मिले थे पहले उसी मोड़ पे आया करो
जब भी मैं आवाज़ दूँ तुम दौड़ के आया करो

गुरूर इश्क में ज़हर पैदा करता है
एक इल्तिजा है, इसे घर छोड़ के आया करो

ये हादसों का शेहर है, ताकि यहीं के लगो
सिर किसी पत्थर पे फोड़ के आया करो

घूंघट में दब गयी हैं यहाँ कई जवानियाँ
तुम शर्म-ओ-लिहाज़ रस्म-ओ-रिवाज़ तोड़ के आया करो

इससे पहले कि टूट के बिखर जाएँ 'अकेला'
नाज़ुक रिश्तों को फिर से जोड़ के आया करो

~अकेला~

Sunday, February 08, 2009

नन्हा फ़रिश्ता

['तनय' - ये तुम्हारे लिए]

नन्हा फ़रिश्ता हमारी ज़िन्दगी में आया
अपने साथ ढेर सारी खुशियाँ भी लाया

छोटे से हाथ अपनी आंखों पे रख कर
चुप ख़ुद से होना बस थोड़ा सा रो कर

आ जाए तब उसको थोडी सी झपकी
धीरे से माँ दे उसको प्यारी सी थपकी

होठों के कँवल मानो कुछ चाहते हो कहना
मेरे मुन्ने तू हमेशा मुस्कुराते ही रहना

मुठी में बंद हो जहाँ भर की जन्नत
दिल से जो मांगी थी तू है वोही मन्नत

पहले तू सीख ले कहना ओ मम्मा
फिर प्यार से बोले मुझको ओ पप्पा

दादा दादी नाना नानी सब का तू प्यारा
घर का चिराग है तू आंखों का तारा

दूध की कटोरी होगी उसमे हो बताशा
मीठा मीठा दूध पीके करेगा तमाशा

झूले गोद में माँ की मानो सावन के झोंटे
रिमझिम सी बारिश में कलियाँ सी फूटें

दिन की थकन लिए जब घर में आऊँ
तेरी हँसी से सारे दर्द भूल जाऊं

दूर हूँ मगर दिल से निकले यह दुआएं
सलामत रहे मेरी उम्र भी तुझे लग जाए

~अकेला~

Sunday, February 01, 2009

आंधी

(एक गरीब को 2 रोटी...तो एक शायर को 2 वाह वाह! तो यदि आपको यह ग़ज़ल पसंद आए तो कमेन्ट देना न भूलियेगा....शुक्रिया!!)

इस बार की आंधी मेरा सब कुछ उड़ा गयी
कड़वा सच गरीबी का मुझको पिला गयी

मैं नाशाद हो चला था अपने मकाम से
एक चींटी की हिम्मत मेरा होंसला बढ़ा गयी

और तो ना था उसके पास मुझे कुछ देने के लिए
मेरी ख़ाक में मेरे ही लिखे सारे ख़त मिला गयी

मेरा सब कुछ ले लो, लौटा दो मुझे माँ
उस मासूम की हसरत मेरी पलकें भिगा गयी

अब ना लिखेगा 'अकेला' और यह ख़बर
शेहर शेहर उडी एक बिजली गिरा गयी

[नाशाद - मायूस; मकाम - मंजिल]

~अकेला~

Saturday, January 24, 2009

खतावार हूँ तो...

(ताजा तरीन ग़ज़ल आपकी नज़र कर रहा हूँ! पसंद आए तो कमेन्ट देना ना भूलियेगा...शुक्रिया)

खतावार हूँ तो सज़ा दीजिये
ना हूँ गर तो फिर मुझे पनाह दीजिये

दुनिया से ज़्यादा तो तुम महफूज़ थे कफस में
मेरी राये मानिये फिर एक गुनाह कीजिये

आपके भी चर्चे हो जायेंगे शेहर में
दीवाना मुझे बस अपना बना लीजिये

आप चाहते हैं अगर यह इश्क और ना पनपे
अपने घर में आने से मुझे कभी तो मना कीजिये

भीड़ इतनी शेहर में कि थक गया 'अकेला'
कज़ा से पहले सुकून दो घड़ी बस दिला दीजिये

[कफस - जेल; कज़ा - मौत]

~अकेला~

Thursday, June 30, 2005

दरमियाँ

अजनबी बनकर दरमियाँ हमारे आज खामोशियाँ बैठी
आए बहुत करीब हम, फिर भी दूरियां बैठी

थरथराते होठों की अनकही के सन्नाटे
उन्ही की गूँज में चुप, दो शेहनाइयां बैठी

दिल के घरोंदे में कहीं एक शक्स बसता था
खाली हुआ मकान, अब सिर्फ़ तन्हाईंयाँ बैठी

अब जब ना मैं हूँ, ना तुम हो, फिर क्यों 'अकेला'
लोगों की जुबां पर, अपनी कहानियाँ बैठी

~अकेला~

Tuesday, June 28, 2005

रात के दूसरे पहर

रात के दूसरे पहर तेरी रूठी याद
जब दबे पाँव मेरे पास चली आती है
और रो रो कर मुझे रुलाती है

फिर उस की उदास और भीघी आँखों में
मैं भी भीग जाता हूँ
और उस की आंखों के मोती चुन कर
तेरी धुंधली सी तस्वीर बनाता हूँ
और उसे गले लगा कर मनाता हूँ

तब वो तेरी शिकायत होते हुए भी
कोई शिकवा करती नहीं
बस आह भरती जाती है
और इन सब आहों को
मेरी बाहों मैं नींद आ जाती है

कभी आओ यहाँ देखो तो सही
तुम्हारा कितना सामान बिखरा पड़ा है
मेरा घर कितना छोटा पड़ गया है
और तेरी यादों का ढेर कितना बड़ा है

आओ तो देखना इक इक लम्हा कैसे
सर झुकाए तेरे लिए खड़ा है
कभी आओ देखो तो सही

रात के दूसरे पहर तेरी रूठी याद
जब दबे पाँव मेरे पास चली आती है

~अकेला~

ख्याल

ख्याल उनको जब भी मेरा आया होगा
याद ने मेरी फिर उन्हें रातों को जगाया होगा

पढ़ा तो होगा ख़त मेरा उसने बार बार खोलकर
ज़माने के डर से फिर उसको कहीं छुपाया होगा

मचला तो होगा दिल अक्सर की सबके रु-ब-रु कह दे
जाके कोने में फिर ख़ुद को ही सब बताया होगा

तड़पता हूँ जिस तरह, क्या वो भी तड़पता होगा
इस सवाल ने क्या उसको भी इतना सताया होगा

'अकेला' की हस्ती ही क्या जो करता शायरी
रख दिया कागज़ पर, जो उसने लिखाया होगा

~अकेला~

Saturday, June 25, 2005

याद

जब जब यह मौसम बदला, और नयी बहार छाये
खुदा की कसम तुम बहुत याद आए

गर्मियों में दिन भर सन्नाटे शोर करते हैं
शाम अकेले छत पर हम ख़ुद से बातें करते हैं
जब उस वक्त हवा का झोंका, मेरे दिल से होकर जाए
खुदा की कसम तुम बहुत याद आए

पतझड़ के मौसम का देखो, कुछ अजब है नज़ारा
फूल सभी मुरझाये, सूना है बाग़ सारा
जब टूट के शाख से पत्ता, मेरे कांधों को छूके जाए
खुदा की कसम तुम बहुत याद आए

बरसात के मौसम में दिन भर की बूंदा बांदी
भीगी हैं मेरी पलकें, गीली है दिल की वादी
ऐसे में कोई अनजाना सा, दो मीठी बात कर जाए
खुदा की कसम तुम बहुत याद आए

जाडों के दिन हैं छोटे, पर रात है बड़ी
कई साल जैसी लगती एक छोटी सी घड़ी
जब चटके कली कोई खेत में, धुप आँगन में लहराए
खुदा की कसम तुम बहुत याद आए

~अकेला~

Friday, June 24, 2005

बेदर्द ज़माने

क्या पाएगा दुनिया से, ये बेदर्द ज़माने हैं
पत्थर के यहाँ दिल हैं, चमड़े की ज़बाने हैं

क्या देगी मुझे दुनिया, क्या मांगने में जाऊं
हाथ पांव हैं सलामत, क्या कम ये खजाने हैं

एक तेरा नाम लेकर, बस हो गए हैं रुसवा
हर तरफ़ है अपना चर्चा, अपने ही फ़साने हैं

तेरा ही जहाँ में, इक घर नहीं 'अकेला'
दिल लेने और देने की, यहाँ और भी दुकानें हैं

~ अकेला~

सुकून

सुकून मेरे दिल को नहीं
ऐसा भी क्या हो गया
वो जो मेरा था नहीं
क्यों लगता है कि खो गया

कहते हैं नसीब वालों को ही
मिलती है मोहब्बत
वो आए तो थे, पर क्या करुँ
नसीब ही मेरा सो गया

अब ना मिलेगा चैन मुझे
सारी उम्र भर
दस्तक देके ख्वाब में
वो बीज प्यार का बो गया

सबसे हंसके बात करे वो,
मुझसे खफा खफा सा था
मुस्कुराके देखा इक नज़र
और दाग दिल के धो गया

~अकेला~

परी

कोमल, चंचल, कल्पना से परे
जल से शीतल, अग्नि से तेज़
किसे पता कैसी है तू
परी है तू,परी है तू

तू हँसे तो फूल खिले
रोये तू, आसमान फटे
कोमल ह्रदय की किस गली में
प्यार लिए बैठी है तू
परी है तू,परी है तू

उदास मन की गहराइयां
जब लेती हैं अंगडाइयां
सागर में ज्वार-भाते सा
तूफ़ान उठा लेती है तू
परी है तू,परी है तू

कोकिला सी तेरी बोली
आंखों में है शबनम
अधरों पे नाज़ुक बोल
सोने सी है चितवन
इस घोर अँधेरी दुनिया में
एक दीप जला देती है
तू परी है तू,परी है तू

जुल्फों को जब तू बांधे
हो जाता है सवेरा
जुल्फें तेरी जो उलझें हो
रात का अँधेरा
गुज़रे जिधर से जब भी
जादू चला जाती है तू
परी है तू,परी है तू

~अकेला~